शिमला। हिमाचल प्रदेश का सेब बागबान लगातार केंद्र सरकार से यह मांग उठा रहा है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क को बढ़ाया जाए, मगर अमरीका के साथ चल रहे टैरिफ वॉर के कारण यह उल्ट हो सकता है। हिमाचल सेब बागबानों को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि सरकार ने यदि दवाब में आकर आयात शुल्क को बढ़ा दिया, तो फिर प्रतिस्पर्धा में पूरी मार हिमाचली सेब पर पड़ेगी। इससे हिमाचल के सेब बागबानों की चिंता बढ़ गई है। सेब बागबानों की मांग के अनुसार अमरीकी सेबों पर मौजूदा 50 प्रतिशत शुल्क को बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने के बजाय भारत इसे और कम करने के लिए मजबूर हो सकता है। संभवत: इसे 50 प्रतिशत से नीचे ला सकता है।अगर ऐसा हुआ तो इस कदम से हिमाचल प्रदेश के सेब बागबानों को गंभीर वित्तीय झटका लगेगा। व्यापार वार्ता के बीच एक रिपोर्ट बताती है कि भारत सरकार अमरीकी सेब, बादाम और अखरोट पर शुल्क कम करने के लिए मजबूर हो सकती है। यदि यह निर्णय लागू किया जाता है, तो घरेलू बाजार में सस्ते अमरीकी सेबों की बाढ़ आ जाएगी। वर्ष 2023 में सेब पर आयात शुल्क 70 फीसदी था जिसे घटाकर 50 प्रतिशत किया गया फिर भी हिमाचल के सेब को नुकसान हो रहा । पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भारत ने 50 प्रतिशत आयात शुल्क को बढ़ाकर 70 फीसदी किया था। इसका तत्काल प्रभाव यह हुआ कि अमरीका में सेब के आयात में 19 गुना वृद्धि हुई, जो केवल 4,496 मीट्रिक टन से बढक़र 1.75 लाख मीट्रिक टन हो गया। इस वृद्धि ने स्थानीय सेब उत्पादकों के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी, जिससे पिछले सेब सीजन के दौरान उन्हें काफी नुकसान हुआ। ऐतिहासिक रूप से उच्च टैरिफ ने आयात को सीमित करने में मदद की है। 2019 में, जब भारत ने ट्रंप के स्टील टैरिफ के जवाब में अमरीकी सेब पर आयात शुल्क 50 से बढ़ाकर 70 फीसदी कर दिया, तो आयात 1.2 लाख मीट्रिक टन से घटकर सिर्फ 4,496 मीट्रिक टन रह गया।
