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लापरवाही से मौत के मामलों में बढ़ेगी सजा

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IPC की धारा 353 की सजा में भी बदलाव हो सकता है।

नई दिल्ली: देश में लापरवाही से मौत के मामलों में सजा की अवधि आने वाले दिनों में बढ़ाई जा सकती है। सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले 3 विधेयकों पर विचार कर रही एक संसदीय समिति लापरवाही के कारण मौत का दोषी पाए जाने वालों के लिए सजा बढ़ाने की सिफारिश कर सकती है। सूत्रों ने बताया कि ऐसे मामलों में मौजूदा 2 साल की सजा को बढ़ाकर 5 साल तक करने की बात चल रही है। वहीं, MCOCA जैसा कानून पूरे देश में लागू किया जा सकता है।

कई बदलावों की सिफारिश करने की संभावना


गृह मामलों से संबंधित स्थायी समिति द्वारा अगस्त में संसद के मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किए गए 3 विधेयकों में कई बदलावों की सिफारिश करने की संभावना है। ऐसा विचार है कि सरकार प्रस्तावित कानूनों को वापस ले सकती है और प्रक्रियात्मक जटिलता से बचने के लिए उनके नए संस्करण पेश कर सकती है। सूत्रों ने कहा कि गृह मामलों की स्थायी समिति 3 विधेयकों को दिए गए हिंदी नामों पर ही कायम रह सकती है। उसने विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ सदस्यों के अंग्रेजी शीर्षकों के सुझाव को भी खारिज कर दिया है।

शुक्रवार को होने वाली है समिति की बैठक

बता दें कि अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट को अपनाने के लिए समिति की शुक्रवार को बैठक होने वाली है। एक अन्य संभावित सिफारिश में बीजेपी के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने के दोषी लोगों के लिए सजा में कमी की पैरवी कर सकती है। सूत्रों ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 353 में अधिकतम 2 साल की जेल की सजा का प्रावधान है और समिति इसे घटाकर एक साल करने की मांग कर सकती है।

इन बदलावों के पीछे क्या हो सकता है कारण?

बता दें कि IPC की धारा 353 का इस्तेमाल अक्सर विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ किया जाता है और समिति के कई सदस्यों का मानना ​​है कि आम प्रदर्शनकारियों के साथ नरमी से पेश आना चाहिए। धारा 304(ए) के तहत लापरवाही से होने वाली मौतों को कवर करने वाले मौजूदा आपराधिक प्रावधानों को आलोचना का सामना करना पड़ा है क्योंकि यह 2 साल की अधिकतम सजा के साथ एक जमानती अपराध है। सड़क दुर्घटना या इमारत ढहने से होने वाली मौतें अक्सर इस अधिनियम के अंतर्गत आती हैं। (PTI से इनपुट्स के साथ)

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