उत्तर प्रदेश: महराजगंज से इरशाद अली खान की रिपोर्ट
*होली खुशियों और गंगा-जमुनी तहजीब का पर्व*
होली का पावन पर्व भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह केवल सनातन का त्योहार नहीं है, बल्कि समाज में भाईचारे, भक्ति और प्रेम का प्रतीक भी है। हिंदू परंपरा में इस उत्सव का विशेष महत्व है, लेकिन यह पर्व भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का भी परिचय देता है, जहां विभिन्न संस्कृतियां एक साथ मिलकर इसे मनाती हैं।
होली का ऐतिहासिक महत्व
होली का वर्णन प्राचीन हिंदू ग्रंथों, जैसे पुराणों और जैन-ग्रंथों में मिलता है। यह त्यौहार भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है, जिसमें बुराई पर विजय का संदेश है। इसके अलावा, इसे राधा-कृष्ण के प्रेम और ब्रज भूमि के होली महोत्सव से भी जोड़ा जाता है।
मुगल काल की होली
मुगल काल में भी यह त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जाता था और इसे “ईद-ए-काबी” या “आब-ए-पाशी” के नाम से जाना जाता था।
1.अकबर का दौर:
अकबर के शासनकाल में आगरा और मुजफ्फरनगर सीकरी में होली का विशेष आयोजन होता था।
आईने-अकबरी के अनुसार, सम्राट स्वयं अपने दरबारियों और पेजों के साथ रंगोत्सव में शामिल थे।
कहा जाता है कि अकबर अपनी रानी जोधाबाई और अन्य हिंदू रानियों के साथ गुलाल और रंगों की होली खेलते थे।
2. जहाँगीर और शाहजहाँ का समय:
जहां गीर के काल की होली में कई चित्रों और फ़्रज़ी ग्रंथों का उल्लेख है।
जहाँ गिरनामा में होली को “रंगों का उत्सव” कहा गया है।
शाहजहाँ के शासनकाल में भी मुगल महल में होली मनाई गई थी।
3. बहादुर शाह ज़फ़र का समय:
अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के शासनकाल में भी होली उत्सव से मनाई गई थी।
ज़फ़र स्वयं एक कवि थे और वे होली पर कई शेर कहते थे। उनका एक प्रसिद्ध शेर है:
जब फागुन रंग झमाते हो, तब देखो बहारें होली की,
और ग़ैरों भी लग जाते हैं गले, ये मौज मस्ती होली की।
गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक
मुगल साम्राज्य में होली सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय भी मनाता था। आम जनता से लेकर दरबार तक, सब इस त्योहार को मिल-जुलकर मना रहे थे।
मुस्लिम फकीर और सूफी संतों ने भी होली को भाईचारे और प्रेम का संदेश देने वाले पर्व के रूप में स्वीकार किया।
प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरो ने भी होली पर कविताएँ लिखी हैं, जिनमें मिश्रित हिंदू-मुस्लिम एकता का सुंदर वर्णन है।
होली का अनोखा स्वरूप
उत्तर प्रदेश: महराजगंज से इरशाद अली खान की रिपोर्ट
*होली खुशियों और गंगा-जमुनी तहजीब का पर्व*
होली का पावन पर्व भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह केवल सनातन का त्योहार नहीं है, बल्कि समाज में भाईचारे, भक्ति और प्रेम का प्रतीक भी है। हिंदू परंपरा में इस उत्सव का विशेष महत्व है, लेकिन यह पर्व भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का भी परिचय देता है, जहां विभिन्न संस्कृतियां एक साथ मिलकर इसे मनाती हैं।
होली का ऐतिहासिक महत्व
होली का वर्णन प्राचीन हिंदू ग्रंथों, जैसे पुराणों और जैन-ग्रंथों में मिलता है। यह त्यौहार भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है, जिसमें बुराई पर विजय का संदेश है। इसके अलावा, इसे राधा-कृष्ण के प्रेम और ब्रज भूमि के होली महोत्सव से भी जोड़ा जाता है।
मुगल काल की होली
मुगल काल में भी यह त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जाता था और इसे “ईद-ए-काबी” या “आब-ए-पाशी” के नाम से जाना जाता था।
1.अकबर का दौर:
अकबर के शासनकाल में आगरा और मुजफ्फरनगर सीकरी में होली का विशेष आयोजन होता था।
आईने-अकबरी के अनुसार, सम्राट स्वयं अपने दरबारियों और पेजों के साथ रंगोत्सव में शामिल थे।
कहा जाता है कि अकबर अपनी रानी जोधाबाई और अन्य हिंदू रानियों के साथ गुलाल और रंगों की होली खेलते थे।
2. जहाँगीर और शाहजहाँ का समय:
जहां गीर के काल की होली में कई चित्रों और फ़्रज़ी ग्रंथों का उल्लेख है।
जहाँ गिरनामा में होली को “रंगों का उत्सव” कहा गया है।
शाहजहाँ के शासनकाल में भी मुगल महल में होली मनाई गई थी।
3. बहादुर शाह ज़फ़र का समय:
अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के शासनकाल में भी होली उत्सव से मनाई गई थी।
ज़फ़र स्वयं एक कवि थे और वे होली पर कई शेर कहते थे। उनका एक प्रसिद्ध शेर है:
जब फागुन रंग झमाते हो, तब देखो बहारें होली की,
और ग़ैरों भी लग जाते हैं गले, ये मौज मस्ती होली की।
गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक
मुगल साम्राज्य में होली सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय भी मनाता था। आम जनता से लेकर दरबार तक, सब इस त्योहार को मिल-जुलकर मना रहे थे।
मुस्लिम फकीर और सूफी संतों ने भी होली को भाईचारे और प्रेम का संदेश देने वाले पर्व के रूप में स्वीकार किया।
प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरो ने भी होली पर कविताएँ लिखी हैं, जिनमें मिश्रित हिंदू-मुस्लिम एकता का सुंदर वर्णन है।
होली का अनोखा स्वरूप
उस समय गुलाब के फूल, स्टोन और केसर मिले से होली की तस्वीरें निकाली जाती थीं। राजमहलों से लेकर इलैक्ट्रिक तक, हर जगह उल्लास का मोहरा रहता था।
होली केवल रंगीन का त्योहार नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध संस्कृति, सामाजिक समरसता और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। यह पर्व हमें प्रेम, भाईचारे और संप्रदाय का संदेश देता है। आज भी यह परंपरा जारी है, जहां हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
होली के इस शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
उस समय गुलाब के फूल, स्टोन और केसर मिले से होली की तस्वीरें निकाली जाती थीं। राजमहलों से लेकर इलैक्ट्रिक तक, हर जगह उल्लास का मोहरा रहता था।
होली केवल रंगीन का त्योहार नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध संस्कृति, सामाजिक समरसता और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। यह पर्व हमें प्रेम, भाईचारे और संप्रदाय का संदेश देता है। आज भी यह परंपरा जारी है, जहां हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
होली के इस शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!